तिलहन फसलों में तिल प्रमुख फसल है। इसमें तेल की मात्रा 50 प्रतिशत के लगभग होता है। इसका तेल खाने के लिए उत्तम है। निम्नलिखित शष्य क्रियाएं अपनाकर अधिक उत्पादन लिया जा सकता है:-
भूमि: तिल अच्छे जल निकास वाली दोमट या बलुई दोमट भूमि में उगाया जाता है। इसकी खेती के लिए 5.5-7.5 पी.एच. मान की भूमि उपयुक्त है।
भूमि की तैयारी: मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करने के बाद 2-3 बार देशी हल से जुताई करे तथा खाद मिलाकर भूमि तैयार करनी चाहिए ।
बिजाई का समय: तिल की बिजाई जुलाई के प्रथम सप्ताह या मानसून की शुरूआत के साथ की जाती है। सिंचाई की सुविधा होने पर जून के दूसरे पखवाड़े में भी की जा सकती है।
बीज की मात्रा: उत्तम गुणवत्ता का 2 कि.ग्रा. बीज प्रति एकड़ पर्याप्त होता है । उपचारित बीज ही प्रयोग करें । शक्ति वर्धक कम्पनी का बीज उपचारित होता है।
बिजाई की विधि: अच्छी पैदावार लेने और कृषि क्रियाएँ करने के लिए तिल की बिजाई लाईनों में करें। 4-5 सें. मी. की गहराई पर 30 सें.मी. चौड़ी लाईनों में पौधे से पौधे का अन्तर 15 सें.मी. रखें ।
खाद व उर्वरक: तिल को अधिक खाद / उर्वरक देने की आवश्यकता नहीं होती परन्तु कम उपजाऊ भूमि में 15 कि.ग्रा. नाईट्रोजन अर्थात् 33 कि.ग्रा. यूरिया बिजाई के समय देनी चाहिए। अधिक खाद देने से वानस्पतिक वृि ज्यादा हो जाती है।
खरपतवार नियंत्रण: तिल की फसल में सकरी पत्तियों वाले खरपतवार नियंत्रण के लिए 3-4 पत्तियों की अवस्था पर 400 मि. ली.(40 मि.ली. प्रति टैंक) टरगा सुपर का प्रति एकड़ स्प्रे करें ।
सिंचाई: तिल में फूल आने के समय पानी की आवश्यकता होती है। यदि वर्षा न हो तो ऐसे समय पानी देना आवश्यक है ।
पौध संरक्षण: कीट फल भेदक सुन्डीः 600 ग्राम कार्बेरिल 50 डब्लयू.पी. 200 लीटर पानी में 15 दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करें।
बीमारियां:
1. फिल्लोडी: यह बीमारी एम. एल. ओ. (माइकोप्लाज्मा लाईक आरगेनिज्म) द्वारा फैलती है और 'फूल के भाग रुपान्तरित होने से फल नहीं बनते। यह लीफ हापर द्वारा फैलता है अतः 200 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. 200 लीटर पानी में 20 दिन के अन्तराल पर फूल आने के समय छिड़काव करें।
2. झुलसाः (Phytopthora Blight) इसमें पत्तियाँ सूख जाती हैं। 800 ग्राम मैंकोजैब / 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
3. जड़ व तना गलन: बीज को बाविस्टिन से उपचारित कर बिजाई करें। खड़ी फसल पर 200 ग्राम कार्बडाजिम 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें ।
4.कटाई: तिल की कटाई समय पर करनी आवश्यक है अन्यथा झड़ने के कारण नुकसान हो जाता है। पत्तियां और फल जब भूरे-पीले पड़ने लगे तो कटाई कर लेनी चाहिए। कटाई करने के बाद बंडल बना कर ऊपर की ओर मुँह करके 7-8 दिन सूखने के लिए खड़े कर देना चाहिए ।
नोटः उपरोक्त दी गई सभी जानकारियां हमारे अनुसंधान केन्द्रों के निष्कर्षो पर आधारित है। फसल के परिणाम मिट्टी, प्रतिकूल जलवायु, मौसम, अपर्याप्त / घटिया फसल प्रबंधन, रोग एवं कीट के आक्रमण के कारण फसल तथा पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। फसल प्रबंधन हमारे नियंत्रण से बाहर है। अतः पैदावार के लिए किसान पूरी तरह जिम्मेदार है। स्थानीय कृषि विभाग द्वारा सुझाई गई सिफारिशें अपनाई जा सकती हैं।
 
                     
                                                 
                                                 
                                                 
                                                 
                                                