बाजरा, जिसे पर्ल मिलेट (Pearl Millet) भी कहा जाता है, भारत की प्रमुख खाद्यान्न फसलों में से एक है। यह खास तौर पर शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में उगाई जाती है, जहाँ पानी की कमी होती है और अन्य फसलें उगाना कठिन होता है। भारत विश्व में बाजरा उत्पादन में अग्रणी देशों में शामिल है।
बाजरे की खेती में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:
भूमि का चयन: अच्छे जल निकास वाली रेतीली दोमट मिट्टी। जलभराव वाली भूमि अनुपयुक्त होती है।
बिजाई का समय: सिंचित क्षेत्र -बारानी क्षेत्र-15 जून से 15 जुलाई, मानसून की पहली वर्षा के आगमन पर
बीज दर: 1.5-2.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़
बीज उपचार: शक्ति वर्धक हाईब्रिड सीड्स कम्पनी का बीज पहले से ही आवश्यक फफूंद नाशी, कीटनाशी, जीवाण खाद आदि से उपचारित होता है।
बिजाई का ढंग: लाईनों से लाईनों का फासला 45 सें.मी. पौधे से पौधे की दूरी: 15 सें.मी.
सिंचाई: सिंचाई वर्षा पर निर्भर करती है। फुटाव के समय, फूल आने तथा दाना बनने के समय सिंचाई आवश्यक है। जहाँ तक संभव हो खारे पानी से सिंचाई न करें।
खरपतवार नियंत्रण: बिजाई के 25-30 दिन बाद एक गोड़ाई करे। बिजाई के तुरंत बाद 400 ग्राम एट्राजिन 50 डब्ल्यू.पी. 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें।
उर्वरक: उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करें। अगर संभव नहीं हो तो निम्न तालिका अनुसार प्रति एकड़ उर्वरक डालें।
यूरिया डी.ए.पी. अर्बोईट जिंक पोटाश
सिंचित क्षेत्र 125 50 3 20
असिंचित क्षेत्र 35 20 3 —
डी.ए.पी, पोटाश व जिंक की पूरी मात्रा बिजाई के समय डाले। यूरिया की आधी मात्रा बिजाई के समय ड्रिल करें। शेष यूरिया दो बार में दे। एक बिजाई के 25-30 दिन बाद व दूसरी मात्रा सिट्टे बनते समय दे।
हानिकारक कीट बालों वाली सुंडी/कातरा: 200 मि.ली. मोनोक्रोटोफॉस (मोनोसिल/न्यूवाक्रान) या 500 मि.ली. क्विनलफॉस 25 ई.सी. (एकालक्स) 200 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ स्प्रे करें।
बिमारियाँ जोगिया/हरी बाल रोग: 500 ग्राम मैंकोजेब (इंडोफिल एम. 45) 200 लीटर पानी में प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें।
नोटः उपरोक्त दी गई सभी जानकारियां हमारे अनुसंधान केन्द्रों के निष्कर्षों पर आधारित है। फसल के परिणाम मिट्टी, प्रतिकूल जलवायु, मौसम, अपर्याप्त /घटिया फसल प्रबंधन, रोग एवं कीट के आक्रमण के कारण फसल तथा पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। फसल प्रबंधन हमारे नियंत्रण से बाहर है। अतः पैदावार के लिए किसान पूरी तरह जिम्मेदार है। स्थानीय कृषि विभाग द्वारा सुझाई गई सिफारिशें अपनाई जा सकती हैं।