शिमला मिर्च उत्पादन की समग्र सिफारिशें

शिमला मिर्च प्रतिकूल वातावरण के प्रति बहुत संवेदनशील होती है। अच्छे गुणवत्ता वाले फलों के लिए आदर्श रात्रि तापमान 16–18°C है। जब तापमान लंबे समय तक 16°C से नीचे चला जाता है तो वृद्धि और उत्पादन दोनों घट जाते हैं। यह दिन का 30°C से अधिक और रात का 21–24°C तापमान सहन कर सकती है। अधिक तापमान और शुष्क हवाएँ फूल और फलों के झड़ने का कारण बनती हैं। शिमला मिर्च पर प्रकाश अवधि और आर्द्रता का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। यह अच्छी जल धारण क्षमता वाली दोमट या बलुई दोमट मिट्टी में बेहतर उगती है। यदि मिट्टी में उचित जल निकास हो तो इसे सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है। मिट्टी का pH 5.5–6.8 के बीच होना चाहिए।

शिमला मिर्च उत्पादन की समग्र सिफारिशें
  • बुवाई का समय : बीज अक्टूबर के अंत में नर्सरी में बोए जाते हैं। पौधों को दिसम्बर–जनवरी में पाले से बचाने के लिए पॉलिथीन शीट या सरकंडा ढककर सुरक्षित किया जाता है और फरवरी के मध्य में खेत में रोपाई की जाती है। जल्दी फसल लेने के लिए बीज अक्टूबर के मध्य में बोए जा सकते हैं और नवंबर अंत में रोपाई की जा सकती है। पाले की अवधि में खेत में भी पौधों को पॉलिथीन या सरकंडा से ढका जाता है।

  • बीज की मात्रा : 200 ग्राम बीज प्रति एकड़।

  • अंतराल : पौधों को 67.5 सेमी की दूरी पर बनी मेड़ों पर 30 सेमी पौधा–पौधा की दूरी पर लगाएँ।

खाद एवं उर्वरक

यह फसल अधिक पोषक तत्वों की माँग करती है। अधिक उत्पादन के लिए दोमट से भारी दोमट मिट्टी उत्तम होती है।

  • खेत की तैयारी के समय 20–25 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ दें।

  • रासायनिक उर्वरक : 50 किग्रा N (110 किग्रा यूरिया), 25 किग्रा P2O5 (175 किग्रा सुपरफॉस्फेट) और 12 किग्रा K2O (20 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश) प्रति एकड़।

  • पूरा P2O5, K2O और 1/3 N रोपाई के समय डालें तथा शेष N को रोपाई के 1 और 2 महीने बाद दो समान हिस्सों में दें।

सिंचाई

पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करें। गर्मियों में हर 4–5 दिन तथा सर्दियों में 7–8 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।

कटाई, संभाल और विपणन

रोपाई के लगभग 3 महीने बाद फसल कटाई योग्य हो जाती है। फलों को पूरी तरह विकसित लेकिन हरे और चमकदार अवस्था में तोड़ें। पैकिंग पेपर ट्रे में करें और क्लिंग फिल्म से लपेटें। इससे 18–20°C पर 10 दिन और 28–30°C पर 7 दिन तक गुणवत्ता बनी रहती है।

कीट एवं रोग प्रबंधन

मुख्य कीट

  1. फल छेदक – फल में छेद कर नुकसान पहुँचाते हैं।

    • नियंत्रण: 100 लीटर पानी में 50 मि.ली. कोरेजन 18.5SC, या 50 मि.ली. ट्रेसर 45SC, या 250 मि.ली. रीजेंट 5SC प्रति एकड़ छिड़कें।

    • सावधानियाँ: पके फल तोड़कर दवाई करें, रोगी फल नष्ट करें, फिप्रोनिल छिड़काव के बाद 10 दिन प्रतीक्षा करें।

  2. माइट्स, थ्रिप्स, एफिड्स और व्हाइटफ्लाई – पत्तियों का रस चूसकर पैदावार घटाते हैं।

    • नियंत्रण: थ्रिप्स के लिए 250 मि.ली. रीजेंट 5SC, एफिड के लिए 250 मि.ली. रीजेंट 5SC या 160 मि.ली. पायरिप्रॉक्सीफेन, व्हाइटफ्लाई के लिए 160 मि.ली. पायरिप्रॉक्सीफेन प्रति 100 लीटर पानी में छिड़कें।

    • खरपतवार नष्ट करें, नाइट्रोजन का संतुलित प्रयोग करें।

मुख्य रोग

  1. फ्रूट रॉट और डाई-बैक : फल पकने पर शाखाएँ सूखना, फलों पर काले धंसे धब्बे।

    • नियंत्रण: स्वस्थ बीज लें, 250 मि.ली. फोलिकुर या 750 ग्राम इंडोफिल M-45 प्रति 250 लीटर पानी में छिड़कें।

  2. वेट रॉट : युवा शाखाएँ, फूल व फल सड़ते हैं, काले पिन जैसे फफूंद दिखते हैं।

  3. लीफ कर्ल (वायरस) : पौधे बौने हो जाते हैं, पत्तियाँ नीचे की ओर मुड़ती हैं।

    • नियंत्रण: प्रतिरोधी किस्में बोएँ, रोगग्रस्त पौधे नष्ट करें, सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु कीटनाशक छिड़कें।

  4. मोज़ेक (वायरस) : पत्तियों पर धब्बे व फफोले, पौधे पीले व बौने।

    • नियंत्रण: रोगग्रस्त पौधे हटाएँ, स्वस्थ पौधों से बीज लें, एफिड नियंत्रण हेतु कीटनाशक छिड़कें।

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