भूमि का चयन: लूणी व सेम वाली जमीनों के अलावा सभी प्रकार की भूमि उपयुक्त।
बिजाई का समय: 15 मार्च से 15 मई तक।
बीज दर: देशी हाईब्रिड कपास 1.2-1.5 कि. ग्रा. प्रति एकड़ ।
बीज उपचार: शक्ति वर्धक हाईब्रिड सीड्स कम्पनी का बीज पहले से ही आवश्यक कीटनाशक, फफूंदनाशक व जीवाणु खाद के टीके से उपचारित होता है।
बिजाई का तरीका: लाईन से लाईन का फासला 100 से.मी., पौधे से पौधे का फासलाः 45 से.मी.
पौधों की छंटाई: बिजाई के 3-4 सप्ताह बाद फालतू पौधे निकाल दें।
उर्वरक की सिफारिश:
उर्वरक मात्रा (कि.ग्रा./एकड़)
राज्य यूरिया डी.ए.पी. पोटाश (एम.ओ.पी.) अर्बोईंट जिंक
हरियाणा 140 50 40 3
राजस्थान 80 35 15 3
पंजाब 125 25 20 3
* यूरिया की एक तिहाई मात्रा, डी.ए.पी., पोटाश व अर्बोईंट जिंक की पूरी मात्रा बिजाई के समय दें।
* यूरिया की एक तिहाई मात्रा बौकी आने पर तथा एक तिहाई फूल आने के समय डाले।
कृपया ध्यान दें......
* जब कपास के पौधे 105-120 सें. मी. के आस पास हों उस अवस्था में कोंपलों को ऊपर से तोड़ने पर अधिक फलधारक शाखाएं आती हैं। कई बार संघनी बिजाई, अधिक सिंचाई व वर्षा के कारण पौधों की वानस्पतिक बढ़वार अधिक हो जाती है जिस कारण फूल नहीं बनते, उस समय सिंचाई रोक कर कोंपलों को ऊपर से तोड़ दें।
* देशी कपास में रस चूसक कीड़ों का प्रकोप प्रायः कम होता है। अक्सर किसान पहला दूसरा स्प्रे रस चूसक कीड़ों के बचाव के लिए करते हैं। देशी कपास के पत्तों पर रोएं होते हैं इसलिए रस चूसक कीट पत्ती पर बैठ नहीं पाते। जबकि कली व फूल बनने से पहले की अवस्था बौकी (स्केयर) में सुण्डियां प्रभावी रहती हैं जो बौकी (स्केयर) को खाती रहती हैं जिनकी ओर किसान का ध्यान ही नहीं जाता। उस समय देशी कपास में पौधों पर फूल दिखाई नहीं देते। ये सुण्डियां फूल और फलों/टिण्डों को खाती रहती हैं तथा बाद में किसान का ध्यान इस ओर जाता है। अतः फसल बचाने हेतु पहला स्प्रे । जुलाई को 160 एम. एल. डैसीस (डेल्टामैथरीन 2.8 ई.सी.) प्रति एकड़ अवश्य करें। उस समय किसान यह न देखे की उसमें कोई कीड़ा है या नहीं। इसके बाद सम्मिट (180 मि.ली.) / डेलिगेट (180 मि.ली.) / ट्रैसर (75 मि.ली.)/टाकुमि (100-120 ग्राम) / प्लेथोरा (250 मि.ली.) प्रति एकड़ का स्प्रे 10 दिन के अन्तराल पर अदल बदल कर दोहराते रहें।
* देशी कपास को उखेड़ा रोग से बचाने के लिए फूल आने के समय 800 ग्राम कार्बेडाजिम प्रति एकड़ 10 कि. ग्रा. रेत में मिलाकर जमीन में छिड़क कर पानी लगायें। यह विधि 20 दिन बाद पुनः दोहराएं। उखेड़ा आने के बाद कोई रोकथाम नहीं है।
जैविक उपचारः 2 कि.ग्रा. बायोक्यूर (ट्राईकोडरमा विरडी) को 100 कि.ग्रा. सड़ी गोबर की खाद में सप्ताह भर फफूंदी पनपाकर शाम के समय जमीन में मिलाकर पानी देने से उखेड़ा को नियन्त्रित किया जा सकता है। जैविक उपचार के साथ रासायनिक उपचार न करें।
* कभी-कभी मौसम में बदलाव के कारण या दूसरी फसलों में रोग अधिक होने के कारण उन फसलों से देशी कपास के खेतों में ट्रांसफर हो जाती हैं उस समय रस चूसक कीटों (सफेद मक्खी/फाका) का प्रकोप देखा गया है। उस अवस्था में रस चूसक कीटों के लिए दवाई का छिड़काव आवश्यक हो जाता है।