भूमि का चयन: अच्छे जल निकास वाली दोमट से हल्की दोमट मिट्टी। सेम व जल भराव वाली भूमि उपयुक्त नहीं।
बिजाई का समय:
ग्रीष्मकालीन: मार्च
खरीफ (मानसून): मध्य मार्च से अप्रेल के प्रारम्भ तक 15 जनवरी से मार्च तक
जून अन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक मानसून के आगमन पर 15 मई से जुलाई तक
बीज दर:
ग्रीष्मकालीनः 10-12 कि.ग्रा. प्रति एकड़
खरीफ: 6-8 कि.ग्रा. प्रति एकड़
दूरी:
ग्रीष्मकालीन: लाइनों का फासला 20-25 से.मी.
खरीफ: लाइनों का फासला 30-45 से मी.
उर्वरक:
यूरिया - 18 कि.ग्रा./ एकड़ बिजाई के समय
एस.एस.पी.- 100 कि.ग्रा. प्रति एकड़ या
डी.ए.पी.- 35 कि.ग्रा. प्रति एकड़
सल्फर दानेदार-8 कि.ग्रा. प्रति एकड़
खरपतवार नियंत्रण: 700 एम.एल. पैडीमैथलिन 30 ई.सी. (स्टोम्प) प्रति एकड़ बिजाई के तुरंत बाद। एक निराई-गुड़ाई बिजाई के 20-25 दिन बाद।
सिंचाई:
ग्रीष्म कालीन: पहली सिंचाई 20-25 दिन बाद तथा बाद में 2-3 सिंचाई 15-20 दिन के अन्तराल पर।
खरीफः सिंचाईयाँ वर्षा की उपलब्धता के आधार पर करें।
हानिकारक कीट:
बालों वाली सुंडी (कातरा) व पत्ता छेदक हरा तेला व सफेद मक्खी
1 एम. एल. मोनोक्रोटोफॉस या 2 एम.एल. क्विनलफॉस (एकालक्स) प्रति लीटर पानी की दर से स्प्रे करें।
बिमारियां:
पीला मोजैक: रोगोर (टैफगोर) बिजाई के 20-25 दिन बाद स्प्रे करें।
पत्तों का धब्बा रोग, बैक्टीरियल लीफ ब्लाईट: मैंकोजेब (इंडोफिल एम-45) 600-800 ग्रा. प्रति एकड़, 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
कटाई: 75% फलियां पकने पर कटाई कर लेनी चाहिए अन्यथा झड़ने का जोखिम बना रहता है।