पालक उत्पादन की समग्र सिफारिशें

यह शीत ऋतु की फसल है लेकिन इसे पूरे वर्ष उगाया जा सकता है। यह पाला भी सहन कर लेती है। सभी प्रकार की मिट्टी में इसकी खेती की जा सकती है, परंतु बलुई दोमट मिट्टी जिसका pH लगभग 7.0 हो, सबसे उपयुक्त मानी जाती है।

पालक उत्पादन की समग्र सिफारिशें

बुवाई का समय और बीज की मात्रा : शीतकालीन फसल सितम्बर–अक्टूबर में तथा ग्रीष्म/बसंत की फसल फरवरी मध्य से अप्रैल तक बोई जाती है। सामान्यत: पालक पूरे साल उगाया जाता है। शीतकालीन फसल हेतु 4–6 किग्रा तथा ग्रीष्मकालीन फसल हेतु 10–15 किग्रा बीज प्रति एकड़ प्रयोग करें।

अंतराल : बीजों को 3–4 सेमी गहराई पर 20 सेमी की दूरी पर कतारों में बोयें।

खाद एवं उर्वरक : प्रति एकड़ 10 टन गोबर की खाद, 35 किग्रा नत्रजन (75 किग्रा यूरिया) और 12 किग्रा P2O5 (75 किग्रा सुपरफॉस्फेट) दें। पूरी गोबर की खाद, P2O5 और आधा नत्रजन बुवाई से पहले डालें तथा शेष नत्रजन को दो हिस्सों में हर कटाई के बाद सिंचाई के साथ दें।

सिंचाई : पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें। ग्रीष्म में हर 4–6 दिन पर और शीतकाल में हर 10–12 दिन पर सिंचाई करें।

कटाई, देखभाल और विपणन

बुवाई के लगभग 3–4 सप्ताह बाद फसल कटाई योग्य हो जाती है। अगली कटाई 20–25 दिन के अंतराल पर करें, किस्म और मौसम के अनुसार। ग्रीष्मकाल में केवल एक ही कटाई करें।

पौध संरक्षण

कीट

  • एफिड (चूसक कीट) : पत्तियों का रस चूसकर उन्हें मरोड़ देते हैं।
    नियंत्रण : खेत की मेड़ों, बेकार भूमि, नालों और रास्तों पर उगने वाली खरपतवार हटाएँ। नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का अत्यधिक प्रयोग न करें।

रोग

  • सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा : पत्तियों पर छोटे गोल धब्बे जिनका केंद्र धूसर और किनारे लाल रंग के होते हैं। यह रोग विशेषकर बीज वाली फसल में अधिक पाया जाता है।

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