भूमि : अच्छे जल निकास वाली मध्यम से हल्की दोमट भूमि।
खेत की तैयारी : एक या दो जुताई करें और जुताई के बाद सुहागा लगाकर खेत को अच्छी तरह से तैयार करें।
बिजाई का समय :
जून से लेकर मध्य जुलाई तक, अगेती फसल जो सिंचिंत हालातों में अच्छी बढती है।
पछेती पकने वाली फसल की बिजाई मध्य जुलाई में कर देनी चाहिए।
बेहतर पोषण प्रबंधन के लिए अर्बोईंट कोपडाईन 10 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से बिजाई के समय प्रयोग करे।
बीज की मात्रा:
5 से 6 कि०ग्रा० प्रति एकड़ अगेती पकने वाली किस्म के लिए
7 से 8 कि०ग्रा० प्रति एकड़ मध्यम अवधि वाली किस्मों के लिए
फासला:
बेहतर हो कि यदि कतार से कतार 45 से०मी० और पौधे से पौधा 15 से०मी० दूरी बेहतर होती है।
निराई-गुड़ाई : बिजाई के 25 से 30 दिन बाद करनी चाहिए।
खरपतवार की रोकथाम के लिए बैसालीन 400 मि०ली० ए०आई० प्रति एकड़ 250 लीटर पानी में मिलाकर फसल बीजने से पहले जमीन में अच्छी प्रकार मिला लें। यदि जमीन भारी हो तो 25 प्रतिशत दवाई बढ़ा लें।
बीजोपचार : बीज को बिजाई से पूर्व राइजोबियम के टीके से उपचारित करें।
उर्वरक : 20 किलो फास्फोरस (125 किलो सिंगल सुपर फास्फेट) व 8किलो नाईट्रोजन (32 किलो किसान खाद 25:) प्रति एकड़ के हिसाब से बिजाई के समय डाले।
सिंचाई : 1 से 2 सिंचाई पर्याप्त है
बीमारियां : हरा तेला फसल को शुरु में नुकसान करता है। इनकी रोकथाम के लिए 200 मि०ली० मैलाथियान 50 ई०सी० को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ हाथ से चलने वाले स्प्रे यंत्र से छिड़काव करें।
चेतावनी : कई बार ग्वार की अगेती बिजाई कर देने पर वर्षा की अधिकता या ज्यादा सिंचाई से पौधों की वानस्पतिक वृद्धि अधिक हो जाती है जिससे फलियाँ पौधों के केवल ऊपरी हिस्से पर एवं संख्या में कम लगती है एवं कई बार फलियाँ बिल्कुल भी नहीं लगती है।
* अधिक फल व पैदावार लेने के लिए फूल आने की अवस्था पर अर्बोईंट एक्सलरेट का स्प्रे 2-2.5 एम.एल प्रति लीटर पानी में मिलाकर करें।
* अधिक तापमान या पौधे में तनाव जैसी स्थिति आने पर 2-2.5 एम.एल अर्बोईंट ग्रो-शक्ति प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
नोट: यहां दिए फसल एवं किस्म के गुण धर्म कम्पनी के अनुसंधान केन्द्रों के निष्कर्षों पर आधारित है। कोई भी फराल एवं उसकी किस्म मिट्टी के प्रकार, प्रतिकुल जलवायु परिस्थिति, मौसम, अपर्याप्त / घटिया फसल प्रबंधन, रोग तथा रोग के आक्रमण के कारण फसल तथा पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। फसल प्रबंधन हमारे नियंत्रण से बाहर है, अतः पैदावार के लिए किसान पूरी तरह जिम्मेदार है। अधिकतम उपज पाने के लिए बीजों को सही वक्त पर बोने तथा अनुकूल कृषि प्रबंधन पद्धतियों को अपनाने की सलाह देते है, एवं स्थानीय राजकीय कृषि अधिकारियों या कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा सुझाई गई सिफारिशें अधिक उत्पादन एवं गुणवत्ता के लिए अपनाई जा सकती है।