ग्वार की खेती कैसे करें? जानिए हर जरूरी कदम

ग्वार, जिसे क्लस्टर बीन्स के नाम से भी जाना जाता है (वनस्पतिक नाम: Cyamopsis tetragonoloba), एक सूखा-रोधी दलहनी फसल है जो मुख्य रूप से भारत और पाकिस्तान के शुष्क एवं अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में उगाई जाती है। इसके बीजों से ग्वार गम प्राप्त होता है, जिसका उपयोग खाद्य, वस्त्र, कागज और पेट्रोलियम उद्योगों में गाढ़ा करने वाले एजेंट के रूप में किया जाता है।

ग्वार की खेती कैसे करें? जानिए हर जरूरी कदम

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ
ग्वार गर्म और शुष्क जलवायु में अच्छी तरह पनपता है, इसलिए यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसे अच्छी जलनिकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है, जिसका पीएच 7 से 8 के बीच होना चाहिए। अत्यधिक पानी या जलभराव वाली मिट्टी में यह ठीक से विकसित नहीं हो पाता और जड़ों में सड़न की संभावना बढ़ जाती है।


भूमि की तैयारी
भूमि को 2–3 बार जुताई करके भुरभुरी बनाया जाता है। समतल भूमि और खरपतवार की सफाई आवश्यक है। भूमि में गोबर खाद या कम्पोस्ट मिलाने से उर्वरता बढ़ती है।


बुवाई का समय और तरीका
ग्वार की बुवाई सामान्यतः जून से जुलाई के बीच मानसून की शुरुआत में की जाती है। बीजों को सीड ड्रिल या छिटकाव विधि से बोया जाता है, पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30–45 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10–15 सेमी रखी जाती है। प्रति हेक्टेयर 15–20 किलोग्राम बीज पर्याप्त होते हैं।


खाद एवं सिंचाई
ग्वार एक दलहनी फसल है जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करता है, इसलिए इसे बहुत अधिक नाइट्रोजन की आवश्यकता नहीं होती। हालांकि, फास्फोरस और पोटाश की पूर्ति उपज बढ़ाने के लिए जरूरी है। सामान्यतः 20 किग्रा नाइट्रोजन और 50 किग्रा फास्फोरस प्रति हेक्टेयर देना पर्याप्त होता है। हालांकि यह सूखा सहन कर सकता है, लेकिन फूल और फली बनने के समय हल्की सिंचाई से अच्छी उपज प्राप्त होती है।


खरपतवार एवं कीट नियंत्रण
शुरुआती अवस्था में खरपतवार नियंत्रण आवश्यक होता है। गुड़ाई और हाथ से निराई करके खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है। ग्वार सामान्यतः रोगों और कीटों से कम प्रभावित होता है, लेकिन पत्ती धब्बा रोग, जड़ सड़न और फली छेदक कीट से नुकसान हो सकता है। नीम-आधारित कीटनाशक या उपयुक्त दवाओं का छिड़काव प्रभावी होता है।


कटाई और उपज
ग्वार 90–120 दिनों में पककर तैयार हो जाता है। जब फलियाँ सूखकर भूरे रंग की हो जाएँ, तब इसकी कटाई की जाती है। कटाई के बाद फसल को धूप में सुखाया जाता है और मड़ाई की जाती है। औसतन 10–15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज की उपज मिलती है, और अच्छी देखभाल में इससे अधिक भी प्राप्त हो सकती है।


आर्थिक महत्व
ग्वार का वैश्विक स्तर पर बहुत महत्व है, विशेष रूप से ग्वार गम की मांग तेल और गैस उद्योग में अधिक है। भारत ग्वार का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है, जिसमें राजस्थान अग्रणी राज्य है। इसके अलावा, ग्वार की पत्तियाँ और फलियाँ सब्जी के रूप में खाई जाती हैं तथा पशु चारे के रूप में भी उपयोगी होती हैं।

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