जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ
बाजरा गर्म मौसम की फसल है और इसे गर्म और शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। यह 300 से 600 मिमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह उगता है। यह सूखा-रोधी फसल बलुई से लेकर दोमट मिट्टी में अच्छे जल निकास के साथ बेहतर होती है। इसका आदर्श पीएच स्तर 6.5 से 8.0 के बीच होना चाहिए।
भूमि की तैयारी
भूमि की 2–3 बार जुताई करनी चाहिए ताकि मिट्टी भुरभुरी और खरपतवार मुक्त हो जाए। समतल भूमि में नमी का समान वितरण सुनिश्चित होता है। भूमि की तैयारी के समय अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर खाद या जैविक खाद मिलाने से मिट्टी की उर्वरता और जलधारण क्षमता बढ़ती है।
बुवाई का समय और तरीका
भारत में बाजरा की बुवाई आमतौर पर मानसून की शुरुआत (जून से जुलाई) में की जाती है। कुछ क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा होने पर इसे रबी (सर्दी) में भी बोया जा सकता है। बीजों को छिड़काव या सीड ड्रिल मशीन से बोया जा सकता है। पंक्तियों के बीच 45 सेमी और पौधों के बीच 10–15 सेमी की दूरी रखनी चाहिए। प्रति हेक्टेयर 4–5 किलोग्राम बीज पर्याप्त माने जाते हैं।
खाद का प्रयोग
हालांकि बाजरा गरीब मिट्टी में भी उग सकता है, लेकिन उर्वरक देने से उत्पादन में काफी बढ़ोतरी होती है। सामान्यतः 40–60 किग्रा नाइट्रोजन, 20–30 किग्रा फास्फोरस और 20 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर देने की सिफारिश की जाती है। नाइट्रोजन को दो हिस्सों में देना बेहतर होता है—आधा बुवाई के समय और आधा टिलरिंग अवस्था में।
सिंचाई
बाजरा अधिकतर वर्षा आधारित फसल है, लेकिन फूल आने और दाना बनने की अवस्था में सिंचाई करने से उपज में वृद्धि होती है। सिंचित क्षेत्रों में 2–3 बार सिंचाई पर्याप्त होती है।
खरपतवार और कीट प्रबंधन
बुवाई के पहले 30 दिनों में खरपतवार नियंत्रण अत्यंत आवश्यक होता है। हाथ से निराई या हल्की गुड़ाई करके खरपतवार नियंत्रित किए जा सकते हैं। बाजरा आमतौर पर रोग और कीटों से सुरक्षित रहता है, लेकिन कभी-कभी यह डाउऩी मिल्ड्यू, स्मट और तना छेदक कीट से प्रभावित हो सकता है। प्रमाणित बीजों का प्रयोग, फसल चक्र अपनाना, और समय पर फफूंदनाशकों और कीटनाशकों का छिड़काव करने से इन समस्याओं से बचा जा सकता है।
कटाई और उपज
बाजरा 75 से 100 दिनों में पक कर तैयार हो जाता है, जो किस्म और जलवायु पर निर्भर करता है। जब पौधे पीले हो जाएं और दाने सख्त हो जाएं तो फसल काटने के लिए तैयार होती है। किसान प्रायः हंसिए से कटाई करते हैं, फिर फसल को धूप में सुखाकर मड़ाई की जाती है। औसतन उपज 15–25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है, और अनुकूल परिस्थितियों में इससे अधिक भी मिल सकती है।
पोषण और आर्थिक महत्व
बाजरा प्रोटीन, फाइबर, आयरन और मैग्नीशियम का अच्छा स्रोत है, और यह ग्लूटन-फ्री होता है, जिससे यह स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों के लिए आदर्श है। आर्थिक रूप से भी यह शुष्क क्षेत्रों में खाद्य और चारे के रूप में एक महत्वपूर्ण फसल है। हाल के वर्षों में पारंपरिक और स्वास्थ्यवर्धक अनाजों की मांग बढ़ने के कारण बाजरे की लोकप्रियता और कीमतों में इजाफा हुआ है।