• देशी कपास उगने के समय भूमि से धीरे-धीरे बाहर आती है उस समय तापमान बढ़ जाने के कारण गर्म मिट्टी, गर्म हवा या लू के स्पर्श से पौधे जलने लगते है। इसलिये उस समय बीज की मात्रा अवश्य बढ़ानी चाहिए।
• यदि खेत में पौधे विरले रह जाते हैं या पौधों की संख्या कम हो, उस स्थिति में कपास के पौधों को 20-30 से.मी. तक के होने पर ऊपर से कॉपल तोड़ दें जिससे पौधों में अधिक शाखाएं निकलेंगी।
• जब कपास के पौधे 105-120 सें.मी. के आस पास हो उस अवस्था में कोपलों को ऊपर से तोड़ने पर अधिक फलधारक शाखाएं आती है। कई बार सघनी बिजाई अधिक सिंचाई, वर्षा के कारण पौधों की वनस्पतिक बढ़वार अधिक हो जाती है जिस कारण फूल नहीं बनते, उस समय सिंचाई रोक कर कोपलों को ऊपर से तोड़ दें।
• देशी कपास में रस चूसक कीड़ों का प्रकोप प्रायः कम होता है। अक्सर किसान पहला दूसरा स्प्रे रस चूसक कीड़ों के बचाव के लिए करते हैं। देशी कपास के पत्तों पर रोए होते हैं इसलिए रस चूसक कीट पत्ती पर बैठ नहीं पाते। जबकि कली व फूल बनने से पहले की अवस्था बौकी (स्केयर) में सुण्डिया प्रभावी रहती हैं जो बौकी (स्केयर) को खाती रहती हैं जिनकी ओर किसान का ध्यान ही नहीं जाता। उस समय देशी कपास में पौधों पर फूल दिखाई नहीं देते। ये सुण्डियां फूल और फलों को खाती रहती है तथा बाद में कृषक का ध्यान इस ओर जाता है। अतः फसल बचाने हेतु पहला स्प्रे 1 जुलाई को 160 एम. एल. डेंसीस (डेल्टामथरीन 2.8 ई.सी.) का अवश्य करें। उस समय किसान यह न देखे की उसमें कोई कीड़ा है या नहीं। अक्सर किसान यह भी सोचते है कि बरसात आयेगी तो ही स्प्रे करूंगा। अतः किसान भाई बरसात आने या पानी लगाने का इंतज़ार न करें। इसके बाद सम्मिट (180 मि.ली.) या डेलिगेट (180 मि.ली.) या ट्रेसर (75 मि.ली.) या टाकुमि (100-120 ग्राम) या प्लेथोरा (250 मि.ली.) प्रति एकड़ का स्प्रे 10 दिन के अन्तराल पर अदल बदल कर दोहराते रहें। पुष्पावस्था में एन.पी.के. 19:19:19 के घोल तथा 50 मि.ली. प्लानोफिक्स का प्रति एकड़ छिड़काव अवश्य दोहराएं। जब फल या टिण्डे बनने आरम्भ हो जाये उस समय 13: 00: 45 के स्प्रे को कम से कम दो बार दोहराएं जिससे फलों को अधिक खुराक मिल सके।
• देशी कपास को उखेड़े से बचाने के लिए फूल आने के समय 800 ग्राम कार्बेडाजिम दवाई 10 कि. ग्रा. रेत में मिलाकर जमीन में छिड़क कर पानी लगायें। यह विधि 20 दिन बाद पुनः दोहराए। उखेड़ा आने के बाद कोई रोकथाम नहीं है। जैविक उपचार 2 कि. ग्रा. बायोक्यूर (ट्राईकोडरमा विरडी) को 100 कि.ग्रा. सड़ी गोबर की खाद में सप्ताह भर फफूंदी पनपाकर शाम के समय जमीन में मिलाकर पानी देने से उखेड़ा को नियन्त्रित किया जा सकता है। जैविक उपचार के साथ रासायनिक उपचार न करें।
• कभी-कभी मौसम में बदलाव के कारण या दूसरी फसलों में रोग (व्याधिया) अधिक होने के कारण उन फसलों से देशी कपास के खेतों में ट्रासफर हो जाती है उस समय रस चूसक कीटों या सफेद मक्खी या फाका का प्रकोप देखा गया है। उस अवस्था में रस चूसक कीटों के लिए दवाई का छिड़काव आवश्यक हो जाता है।
देशी कपास की संकर किस्मों के लिए खाद की निम्नलिखित मात्रा की सिफारिश की जाती है।
राज्य | यूरिया | डी.ए.पी. | पोटाश | जिंक सल्फेट |
हरियाणा | 150 | 50 | 40 | 10 |
राजस्थान | 85 | 35 | 15 | 10 |
पंजाब | 130 | 27 | 20 | 10 |
राज्य | नाइट्रोजन | फॉस्फोरस | पोटाश |
हरियाणा | 70 | 24 | 24 |
राजस्थान | 40 | 16 | 8 |
पंजाब | 60 | 12 | 12 |
Bahut achi jankari dhi h ji aap ne
Shakti vardhak bhut aachi basal ka bij uatpadan karti h 💯👍👍 lekin bij milne m bhut problem aati h sir 2022 m mujko 3 beg mile thy kr 64 k vo bhi Balck m ab bhut bar Koshi karli m tilak bazar bhi gaya bolty h ki delar ko hi milega àap lelena ji delar 2000 ka beg bolta h aap ko aapni hi dukan par khula bij sale karna chay ji taki har garib kishan ko milsk
सर ये बीज उपलब्ध कराये
सर ये बीज उपलब्ध कराये कहीं पर ये बीज नहीं मिल रहा है
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Karnda Rajasthan